टिहरी आखिरकार लंबे इंतजार के बाद उत्तराखंड का सबसे लंबा सस्पेंशन डोबरा-चांठी पुल बनकर तैयार हो गया है. जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. हालांकि ये तय नहीं किया गया
उद्घाटन वर्चुअल या फिर विधिवत रूप से किया जाएगा,
15 साल से कालापानी की सजा भुगत रहे टिहरी जिले के प्रतापनगर की मुश्किलें अब जल्द खत्म होने वाली हैं। डोबरा-चांठी सस्पेंशन ब्रिज(झूला पुल) का निर्माण कार्य अंतिम चरण में है। इस पुल के बनने से करीब ढाई लाख की आबादी की मुश्किलें कम हो जाएंगी। पहले जहां प्रतापनगर के लोगों को नई टिहरी बाजार पहुंचने में करीब पांच घंटे लगते थे। वहीं, अब पुल के बनने के बाद ये दूरी घटकर सिर्फ डेढ़ घंटे रह जाएगी। इसके साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा के हालातों में भी सुधार होगा। उम्मीद है कि सितंबर में पुल के ऊपर से वाहन गुजरने शुरू हो जाएंगे।
2006 में शुरू हुए डोबरा पुल के काम के दौरान कई समस्याएं सामने आईं। गलत डिजायन, कमजोर प्लानिंग और विषम परिस्थितयों के चलते पुल का काम कई बार रुका, लेकिन अब इस पुल के ऊपर वाहन गुजरने में बस कुछ महीनों का समय बाकी है।
टिहरी झील बनने के बाद से ही प्रतापनगर क्षेत्र जिला मुख्यालय से अलग-थलग पड़ गया। तब से लेकर आज तक स्थानीय लोगों को कई तरह की परेशानियों से जूझना पड़ रहा है। साथ ही स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी जरूरी सुविधाओं का भी अकाल है। आलम ये है कि क्षेत्र में जब कोई बीमार पड़ जाता है तो उसे समय पर इलाज नहीं मिल पाता है।
प्रतापनगर जाने के लिए लोगों को पीपलडाली और भल्डयाना रोड से जाना पड़ता है, लेकिन पुल बनने से नई टिहरी से डोबरा पुल पार कर प्रतापनगर पहुंचा जा सकेगा। इससे प्रतापनगर की लगभग दो लाख की आबादी को कई तरह की दिक्कतों से भी छुटकारा मिल पाएगा। आपको बता दें कि फिलहला, नई टिहरी से पांच घंटे का सफर तय कर प्रतापनगर पहुंचा जाता है। अगर पुल बन जाता तो सिर्फ डेढ़ घंटे में ही सफर तय किया जा सकता है।
साल 2010 में बंद करना पड़ा था डोबरा पुल का निर्माण
टिहरी झील पर बन रहे देश के सबसे लंबे डोबरा-चांठी सस्पेंशन ब्रिज झूला पुल का निर्माण कार्य वर्ष 2006 में शुरू हुआ था, लेकिन वर्ष 2010 में डिजाइन फेल होने के कारण इसे बंद करना पड़ा। तब तक पुल निर्माण पर 1.35 अरब की रकम खर्च हो चुकी थी। इसके बाद वर्ष 2016 में लोनिवि निर्माण खंड ने 1.35 अरब की लागत से दोबारा निर्माण कार्य शुरू किया। पुल के डिजायन के लिए अंतराष्ट्रीय निविदा जारी की गई, जिसके बाद पुल का नया डिजाइन दक्षिण कोरिया की कंपनी योसीन से तैयार कराया गया। तब से कार्य तेजी से चल रहा था, लेकिन बीच में वर्ष 2018 में पुल तीन सस्पेंडर (पुल के बेस को लटकाने वाले लोहे के रस्से) अचानक टूट गए।
अबतक तीन अरब रुपये हो चुके हैं खर्च
इससे पुल का निर्माणाधीन हिस्सा टेढ़ा हो गया, जिसके बाद फिर से पुल का काम शुरू किया गया। अभी तक पुल पर लगभग तीन अरब रुपये खर्च कर दिए हैं। इसी वर्ष मार्च में कोरोना वायरस संक्रमण के चलते हुए लॉकडाउन का असर डोबरा पुल पर भी पड़ा और पुल के निर्माण में लगे श्रमिकों को अपने घर जाना पड़ा। अब थोड़ा स्थिति सामान्य होने पर पुल में धीरे-धीरे श्रमिकों की संख्या बढ़ रही है, जिससे काम में तेजी आ रही है। इन दिनों पुल की एप्रोच रोड और पुल पर लगने वाले बूम बैरियर का काम किया जा रहा है। बूम बैरियर में पुल के ऊपर से गुजरने वाले वाहनों का भार परीक्षण किया जाएगा। इस पुल के ऊपर 16 टन भार के वाहन गुजरने की क्षमता है। इसके अलावा पुल के ऊपर फसाड लाइटें भी लगाई जाएंगी, जो रात में पुल पर जगमगाएंगी।
सितंबर तक पूरा हो जाएगा काम
डोबरा-चांठी पुल के इंजीनियर एसएस मखोला ने बताया कि पुल में काम लगातार किया जा रहा है। सितंबर 2020 में पुल का काम पूरा कर दिया जाएगा, जिसके बाद पुल के ऊपर से वाहन चलने शुरु हो जाएंगे।
प्रतापनगर और गजाणा की बड़ी आबादी को जोड़ेगा पुल
टिहरी बांध प्रभावित प्रतापनगर और उत्तरकाशी के गाजणा क्षेत्र की बड़ी आबादी को जोड़ने वाले डोबरा-चांठी पुल की कुल लंबाई 725 मीटर है। इसमें सस्पेंशन ब्रिज 440 मीटर लंबा है। इसमें 260 मीटर आरसीसी डोबरा साइड और 25 मीटर स्टील गार्डर चांठी साइड है। पुल की कुल चौड़ाई सात मीटर है, जिसमें मोटर मार्ग की चौड़ाई साढ़े पांच मीटर है, जबकि फुटपाथ की चौड़ाई 0.75 मीटर है।