विश्व पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा पंचतत्व में हुए विलीन, पूर्व में ताजा खबर उत्तराखंड पर की थी अपनी बात साझा,

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पर्यावरण विद सुंदर लाल बहगुणा की मृत्यु की खबर सुनने के बाद टिहरी के लोगों में मायूसी छा गई, लोगों ने कहा सुंदरलाल बहुगुणा की मृत्यु देश के लिए अपूरणीय क्षति है ,टिहरी के लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि सुंदरलाल बहुगुणा टिहरी जिले की एक विशाल धरोहर है जो आज हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उन्होंने टिहरी के लोगों को संघर्ष में जीत हासिल करने का मंत्र सिखाया है और कहा संघर्ष कभी बेकार नहीं जाता है,

1-  विश्व पर्यावरणविद्14 अप्रैल 2009 पदमविभूषण से नवाजे गये श्री सुन्दर लाल बहुगुणा की जन्म स्थली सिरांई मरोड़ा गांव टिहरी बांध बनने से जलमग्न हो गया था, वह अब झील का जल स्तर घटने धीरे-धीरे खण्डरयुक्त मकान दिखने लगने लग हैं। श्री बहुगुणा जी ने अपने पैतृक गांव के स्कूल में प्राररम्भिक शिक्षा ली थी। स्कूल के आंगन दो पेड़ मौजूद थे, जो जल स्तर घटने से दिखने लग गये हैं। जबकि स्कूल झील के पानी खण्डर हो गया है और अपने जगह पर खड़े होकर दुबारा जीने की उम्मीद लेकर को लोगों स्वच्छ वातावरण में देने को तैयार है, जो वर्तमान में झील में दिखाई दे रहे हैं।

2-        उनसे जब यह पूछा गया कि आपकी शिक्षा कहां हुई है, तो उन्होंने कहा कि प्रारम्भिक शिक्षा गांव के बाद मैंने अपने पैतृक गांव के बाद कक्षा-6 से 10 उत्तरकाशी में शिक्षा ली, उसके बाद कक्षा-11 व 12 की पढ़ाई प्रताप इण्टर कालेज टिहरी में मैंने राजशाही के खिलाफ सुमन जी का साथ देने के कारण मुझे इण्टर की परीक्षा पुलिस हिरासत में देनी पड़ी, क्योंकि मैंने श्रीसुमन जी का साथ दिया था लेकिन मुझे इण्टर की परीक्षा प्रधानाचार्य की कहने पर दिलवायी गयी

3-        वनांे को बचाने के लिए सबसे पहले उत्तराखण्ड से चिपको आंदोलन शुरू करते हुए राष्ट्रीय एवं विश्व स्तर तक पहंुचाया। उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे जंगल कम हो रहे हैं और पहाड़ों में कमी की अत्यधिक मात्रा में की हो रही है। इसका कारण यह है कि आज पहाड़ों में जंगलों का कट जाना एक दुर्भाग्यपूर्ण है।

          उन्होंने कहा कि पहाड़ों में वृक्षारोपण किया जाय, और यह कार्य स्थानीय लोगों को रोजगार के तौर किया जाय, जिससे पहाड़ में बेरोजगार युवकों को रोजगार मिलेगा और इससे हिमालय सुरक्षित रहेगा।

4-        श्री बहुगुणा जी कहा कि तराई क्षेत्रों से जो वन कट गये हैं, और से गर्मी की लू आने से पहाड़ों के गलेश्यिर पिघल रहे हैं। श्री बहुगुणा ने बताया कि जब मैं 1978 में गोमुख के पास रेगिस्तान देखा तो मुझे धका लगा और मैंने देखा की गलेश्यिर लगकर पहाड़ रेगिस्तान में परिवर्तित हो रहे हैं और तब मैंने संकल्प लिया मैं चावाल नहीं खाऊंगा। उन्होंने कहा कि तराई क्षेत्रों व पहाड़ों में पेड़ भरपूर मात्रा में लगाकर जल की समस्या से निजात पाया जा सकता है।

5-        उन्होंने कहा कि टिहरी बांध के अधिकारियों द्वारा इस झील की उम्र 100 साल तक है, लेकिन हिमालयन विशेषज्ञों ने बताया कि झील में गाद भरने से उसकी उम्र 30 साल है और की पानी समास्य बनी रहेगी।

6-        श्री बहुगुणा जी कहते हैं कि मुझे दुख है कि इस झील से अन्य शहरों को पानी, बिजली तो दिया जाता है, लेकिन हमारे पहाड़ों में आज पानी का सबसे बड़ा संकट बन गया है। यदि पहाड़ से धीरे-धीरे वन कम होते रहेंगे तो आने समय पहाड़ में बर्फवारी नहीं होगी और गलेश्विर धीरे-धीरे पूरे समाप्ति की ओर खत्म हो जायेंगें, जो पूरे विश्व की सुरक्षा की दृष्टि खतरनाक रूप लेगी।

7-        विदेशों में मैंने कई देशों में चिपकों आंदोलन चलाया, जिसे इसे वह घटना मानते थे। विदेशों में प्राकृतिक को व्यापारिक वस्तु माना जाता था। चिपको आंदोलन ने जो नारा से दिया उससे वह बहुत प्रभावित हुए,

क्या है जंगल के उपकार,

मिट्टी पानी और बयार,

जिंदा रहने के आधार

8-    श्रीमती विमला बहुगुणा (श्री बहुगुणा की पत्नी) बताती श्री बहुगुणा जी पहले राजनीति मैं थे, मैंने उनसे शादी से पहले यह शर्त रखी थी कि अगर आप राजनीति छोड़कर समाज के लिए कार्य करेंगे तो में आपसेशादी करूंगी, जो कि चिपको आंदोलन हमारा साझा कार्यक्रम है। टिहरी बांध बनने में पुरी तरह आहत हूं। इस बांध से में हमारी संस्कृति पूरी तरह खत्म हो गयी है। पहाड़ों में बहादुर महिला है, उसकी सुरक्षा के लिए आज कोई तत्पर नहीं है, जिन्होंने जल, जंगल, जमीन कर्म समझकर इसे सुरक्षित रखा है। टिहरी की भागीरथी घाटी व भिलंगना घाटी में जो उपजाऊ भूमि थी, वह नष्ट हो गई। आज हमारे झील के ऊपरी हिस्से (प्रतापनगर क्षेत्र) के लोगों को आज झील से पानी लेने हक नहीं, जबकि 50 गांव के लिए पंपिंग योजना स्वीकृत थी, झील में पानी कम होने के कारण निरस्त दी गई।श्री बहुगुणा जी ने अपने लेख में लिखा है कि मुझे याद पड़ता है कि वृक्ष मानव रिचर्ड सेण्ट बाॅर्व को मैंने उनके मार्फत पहल पत्र चिपको आंदोलन के बारे में 1977 में भेजा था। बेकार उसी वर्ष विश्व सम्मेलन में भाग लेने दिल्ली आये थे और उनसे मुझे बेकर के बारे में अधिक जानकारी मिली। मेरी गोल्डस्मिथ से पहली मुलाकात जून 1982 में लंदन में हुई, जब संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम में स्टाकहाम सम्मेलन के दस वर्ष पूरे होने के उपलब्ध में पर्यावरण पर लोक सुनवाई का आयोज किया गया। मेरी पहचान सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण संदेश के पहंुचाने वाले के रूप में की गई थी और तब तक हम कश्मीर-कोहिमा चिपको पैदल यात्रा के तीन चरणों में पश्चिमी और नेपाल सहित मध्य हिमालय की पैदल यात्रा कर चुके थे। लंदन में मेरी उपस्थिति का लाभ उठाकर बी0सी0सी0 ने चिपको आंदोलन पर एक फिल्म बना दी, जिसका नाम ’’एक्सिंग’’ आफ हिमालय था, जिसका प्रदर्शन का कार्यक्रम रखा गया। इसमें इग्लैण्ड के कई प्रमुख प्रख्यात लोगों को बुलाया गया, जिसमें गोल्ड स्मिथ भी थे। जब सम्मलेन शुरू हुआ तो अन्य वक्ताओं की तरह मुझे भी तीन मिनट बोलने का समय मिला। मैंने तीन मिनट में अपनी बात समस्त करते ही अध्यक्ष ने कहा कि तुमने अपनी बात प्रभावकारी ढंग से रखी दी है, पर मैंने कहा कि मेरे लिए यह सम्मलेन तीर्थ स्थान की तरह है और हमारी संस्कृति हमें सिखाती है कि तीर्थस्थान खाली हाथ नहीं जाना। मैं आपको कुछ भेंट करने के लिए लाया हूं। मैं मंच तक पहंुचा अपने कंधे के झोले से चिपको यात्रा का नक्श निकाला और साथ ही गंगोत्री की पवित्र जल की बोतल दी और कहा कि यह पवित्र गंगा का उद्गम जल है। गंगा सब नदियों की प्रतिनिधि है, नदियां भोगवादी सभ्यता के कारण उनको मुक्त करना है, तब ही पर्यावरण सुरक्षित रहेगा। इस दृश्य ने गोल्डस्मिथ को इतना प्रभावित किया कि दोपहर के भोजन के लिए सभाकक्ष से बाहर निकलते ही वह मुझसे निफ्ट गया। मुक्त हास्य बिखरते हुए कहा कि बहुगुणा जी मुक्त सारे सम्मलेन में छ गये। यहां आए हुए सब विद्धान राजनैता बौने पड़े गये।

 9 -साथ ही सुन्दर लाल जी  टिहरी बांध की उम्र  पर टिप्पण्ी करते हुये कहा कि हिमालय बिशेषज्ञ के अनुसार  टिहरी बांध की उम्र गाद भरने से 100 साल न होकर बल्कि 30 साल ही होगी

 

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