टिहरी झील बनी अभिशाप झील के किनारे श्मशान घाट ना होने के कारण जान जोखिम में डालकर शवो को जला रहे हैं ग्रामीण,
आपको बता दें कि 42 वर्ग किलोमीटर टिहरी बांध की झील बनने के बाद झील के आसपास के गांव के लोग अंतिम संस्कार करने के लिए शवों को नदी के किनारे ले जाते थे और हिंदू रीति रिवाज के अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया जाता था
परंतु टिहरी झील बनने के बाद झील के आसपास रहने वाले गांव के लोग को अब जान जोखिम में डालकर उबड खाबड रास्ते से होकर झील के किनारे शबों को अंतिम संस्कार करने के लिए ले जाते हैं
कई बार शबों को जलाते समय कई हादसे भी हुए हैं जिनमें आसपास के लोगों ने डूबते हुए लोगों को बचाया
टीएचडीसी व पुनर्वास विभाग के द्वारा झील के किनारे रोला कोर्ट के पास 15 सालों से अंतिम संस्कार करने के लिए शवदाह गृह नहीं बनाया गया, जबकि शवदाह बनाने की मांग लगातार गांव के लोग करते आ रहे हैं
जबकि घाट बनाने के लिए पुनर्वास विभाग के पास 65 लाख रुपये उपलब्ध हैं परंतु अभी तक घाट बनाने पर यह पैसे खर्च नहीं किए गए जिससे आसपास के ग्रामीणों में आक्रोश है
रोलाकोट गांव के ग्रामीणों का कहना है कि रोलाकोट गांव के नीचे नदी किनारे पालेंन नाम की जगह पर एक पैतृक श्मशान घाट हुआ करता था जिसमें रेका पट्टी के 42 गांव के लोग शवो के अंतिम संस्कार करने के लिए ले जाते थे,लेकिन टिहरी झील बनने के बाद अब ग्रामीणों को झील में के किनारे ही जान जोखिम में डालकर शवों का अंतिम संस्कार करना पड़ा है
रौलाकोट सहित 42 गांव के ग्रामीणों ने पुनर्वास विभाग और टीएसडीसी को चेतावनी देते हुए कहा कि जल्दी ही रोलाकोट के नीचे श्मशान घाट नहीं बनाया गया तो एक शासन प्रशासन के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया जाएगा क्योंकि ग्रामीण जान जोखिम में डालकर शवों को जलाने के लिए मजबूर हैं इसलिए जिला प्रशासन से मांग है कि वह जल्दी से जल्दी रोला कोट नीचे शव दाह ग्रह बनाएं
वही पुनर्वास विभाग के अधिशासी अभियंता दिनेश कुमार नेगी से बात हुई तो उनका कहना था कि इस मामले में साइट विजिट करने के बाद जल्दी ही सरदार ग्रह बनाने की कार्रवाई की जाएगी