उत्तराखंड के हर कोने में सौंदर्य, इतिहास और प्रकृति का खजाना फैला हुआ है. इसी को देखने के लिए दुनिया भर के पर्यटक लाखों की तादाद में यहां पहुंचते हैं. यूं तो यहां का हर कोना, शहर और गांव अपना अलग महत्व रखता है. लेकिन यहां की कुछ जगहों का आकर्षण पर्यटकों के बीच हमेशा ही रहता है. टिहरी जिले के सीमांत गंगी गांव का भेड़ कौथिग मेला अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है.टिहरी जनपद के गंगी गांव में भेड़ कौथिग का आयोजन किया गया. ग्रामीणों ने सोमेश्वर महादेव मंदिर के चारों ओर भेड़-बकरियों की परिक्रमा करवाकर यश और कुशलता की कामना की. मेले में क्षेत्र के लोगों की भीड़ देखने को मिली.गंगी गांव टिहरी जनपद का सबसे सुदूर सीमांत गांव है. विकास खंड मुख्यलय से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गंगी गांव आज भी अपने रीति रिवाजों पर कायम हैं. गंगी गांव के लोगों का रहन-सहन और वेशभूषा आज भी वैसे ही है जैसे पहले हुआ करती थी. गंगी गांव के ईष्टदेव सोमेश्वर महादेव के प्रांगण में हर तीसरे वर्ष भेड़ कौथिग का आयोजन होता है. हजारों की संख्या में भेड़ बकरियों को मंदिर के चारों ओर घुमाया जाता है. गंगी गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि और भेड़ पालन है. जिस कारण यहां पर हर तीसरे वर्ष भेड़ कौथिग का आयोजन होता है. पारंपरिक वेशभूषा में यहां पर झुमैलो नृत्य भी होता है जो मेले का मुख्य आकर्षण रहा है.
गाव के लोगों ने कहा कि यहा पौराणिक मेला है जो हर तीसरे वर्ष लगता है और इस वर्ष यहा कार्यक्रम सबसे भव्य और दिव्य हुआ है.
यह कार्यक्रम सोमेश्वर महादेव का आशीर्वाद से होता है और भेड़ घुमाने वाला दृश्य अति सुन्दर दृश्य था. गंगी गांव के लोगों को बधाई देना चाहता हूं कि जिन्होंने अपनी पौराणिक संस्कृति को बचाया रखा है.
यहां पर हर तीसरे वर्ष लगने वाला ये दो दिवसीय मेला बहुत ही भव्य मेला होता है. जहां पर हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं. वहीं, गंगी गांव के मंदिर में देवी-देवताओं के साथ एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जिस आयोजन में सबसे आश्चर्य देखने के लिए भेड़ है. जो भी हजारों की संख्या में मंदिर के प्रांगण में आते हैं और फिर मंदिर के चारों तरफ कई देर तक दौड़ लगाते हैं. इसको लेकर ग्रामीणों का कहना है कि कहते हैं कि यहां गांव में अभी भी देव शक्ति है. यह देखने विदेशों के पर्यटक यहां पहुंचते हैं. यह आयोजन हर 3 साल में किया जाता है