माँ चंद्रबदनी मंदिर की महिमा जानिए, दर्शन मात्र से ही होती है मनोकामना पूर्ण,

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देवभूमि उत्तराखंड में टिहरी जिले के प्रसिद्ध मां चन्द्रबदनी मंदिर माता के 52 शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर समुद्रतल से 2277 मीटर ऊपर चन्द्रकुट पर्वत पर बसा है

चन्द्रबदनी सिद्धपीठ मंदिर चन्द्रकूट पर्वत पर स्थित माँ चंद्रबदनी का मंदिर है इसका वर्णन क़ेदारखण्ड के.141 वे अध्याय में मिलता है।

मान्यता है कि माता सती का कटि भाग यहां स्थित चन्द्रकूट पर्वत पर गिरने से यहां सिद्धपीठ की स्थापना हुई। इसलिए यहां का नाम चन्द्रबदनी पड़ा। यहां माता की मूर्ति के दर्शन कोई नहीं कर सकता है। पुजारी भी आंखों पर पट्टी बांधकर मां चन्द्रबदनी को स्नान कराते हैं।

आदि जगतगुरु शंकराचार्य ने यहां शक्तिपीठ की स्थापना की। मंदिर में देवी मां का श्रीयंत्र है। मंदिर के गर्भगृह पर एक शिला पर उत्कवीर्ण इस श्रीयंत्र के ऊपर चांदी का बड़ा छत्र है। इस सिद्धपीठ में आने वाले श्रद्धालुओं को मां कभी खाली हाथ नहीं जाने देतीं। स्कंदपुराण, देवी भागवत एवं महाभारत में इस सिद्धपीठ का वर्णन है। प्राचीन ग्रंथों में यहां का उल्लेख भुवनेश्वरी सिद्धपीठ नाम से है। भक्त यहां सिर्फ श्रीयंत्र के ही दर्शन करते हैं। शक्तिपीठ के गर्भगृह में काले पत्थर के श्रीयंत्र के दर्शन करने तथा पूजा में प्रयुक्त शंख का पानी पीने का बड़ा महत्व माना जाता है।

कह जाता है कि महाभारत की एक कथा के अनुसार चन्द्रकूट पर्वत पर अश्वत्थामा को फेंका गया था। चिरंजीव अश्वत्थामा अभी भी हिमालय में विचरते हैं यह माना जाता है।

इस मंदिर के गर्भगृह में भूमि पर भुवनेश्वरी यंत्र स्थापित है। जबकि ऊपर की ओर स्थित यंत्र सदा ढका रहता है। पुजार गांव के ब्राहमण ही इस मंदिर में पूजा अर्चना करते है

हिंदू कथाओं के अनुसार चंद्रबदनी मंदिर की कहानी उस समय की है जब माता सती के पिता पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ किया। इस अवसर पर शिव को अपमानित करने के लिए उन्हें यज्ञ का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया था। और देवी सती शिव के पिता के हाथों हुए अपमान को सहन नही कर सकी और आग में कूद गई और अनुष्ठान के प्रदर्शन में बाधा डाल दी। बाद में, क्रोधित शिव ने सती के जले हुए शरीर को उठाया और उनके निवास स्थान की ओर चल पड़े। इस पल में पृथ्वी हिंसक रूप से हिल गई और शिव को ऐसा करने से रोकने के लिए देवताओं और देवताओं की एक पूरी संख्या एक साथ आई।

शिव को समझाने में असमर्थ, विष्णु जी ने आखिरकार अपना चक्र भेजा और सती के जले हुए शरीर को नष्ट कर दिया था। जिससे देवी सती के शरीर के टुकड़े अलग अलग स्थानों पर जा कर गिरे थे और बाद में उन गिरे हुए स्थानों पर शक्ति पीठो का निर्माण किया गया था। ठीक उसी प्रकार आज जिस स्थान पर चंद्रबदनी मंदिर स्थापित है उस स्थान पर देवी सती शरीर का धड़ गिरा था।

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