जनपद टिहरी गढवाल के घनसाली के समीप बुढाकेदार मंन्दिर की महत्ता सदियो से चली आ रही हे। कहा जाता हे कि इस मन्दिर की स्थापना सतयुग में स्वम् भगवान शिव ने की थी भगवान शिव पहले यही निवास करते थे। इसलिये बूढाकेदार को पहला केदार कह जाता हे। यह पर पौराणिक मूर्तिया भी हे
कुरूक्षेत्र के युद्ध में पांडवो ने कोंरवो को मार दिया था युद्ध में पांडवो के द्धारा अपने ही परिवारो के लोगो का वध कर देने पर पांडवो पर गोत्र हत्या का पाप लग गया था इस पाप से मुक्ति पाने के लिये पांडवो ने भगवान शंकर से प्रशन पूछा कि मुक्ति कैसे मिलेगी तो भगवान ने पांडवो को कहा कि तुम उत्तर दिशा में जाओ वही तुम्हे भगवान शिव मिलेगे।
उसके बाद पांडवो उत्तर दिशा की तरफ चलते चलते सतांपंत-महापत की तरफ बढते गये।जहा पर भगवान शिव ने भैंस का रूप धारण किया हुआा था पांडवो इसी इलाके में भगवान का रहने का आभास हुआ तो भीम ने भैस के आने जाने वाले रास्ते में अपनी दोनो जांघ फैला दी ओर जो सामान्य भैस थी वह भीम के जांघ के नीचे से चलते गये। ओर अन्तिम में जैसे ही भगवान शिव जाघ के पास आये जो उन्होने भीम के जांघ पर अपनी गद्धा से वार किया। उसी दोरान पांडवो ने शिव को पकडना चाहा तो भगवान शिव ने दलदल में समा गये जिसमें सिर नेपाल के पशुपतिनाथ में निकला ओर पीछे का हिस्सा उत्तराखण्ड के केदारनाथ में निकला ओर शरीर का शेष
भाग बूढाकेदार में ही रहा जो बूढाकेदार के नाम से प्रसिद्ध हुआ यही वह जगह हे जहा पर भगवान ने बूढे बाबा के रूप में पांडवो को दर्शन दिये।
पैराणिक काल से इस मन्दिर में पूजा करने वाले लोग रावल होते हे जिनके कान जन्म से छिदे होते हे। ओर जब रावल की मृत्यु होती हे तो उनको इसी मन्दिर के प्रागण में समाधि दी जाती हे।
साथ ही मान्यता हे कि बूढाकेदार के लोग केदारनाथ की यात्रा पर नही जाते और अगर चले गये तो उनको कुछ भी परिणाम भुगतना पडता हे। और कोई केदारनाथ जाना चाहता हे तो पहले बूढाकेदार बाबा से अनुमति लेनी पडती हे।
सरकार की अनदेखी के कारण बूढाकेदार पर्यटक स्थल के रूप में प्रसिद्ध नही हो पाया साथ ही पिछली 2013 की आपदा के कारण मन्दिर के नीचे तक धर्मगंगा ओर बालगंगा को पानी आ गया था जिससे मन्दिर के नीचे कटाव हुआा लेकिन आज तक कोई भी सुरक्षा दीवार नही दी गई जिस पर ग्रामीणो का कहना हे कि मन्दिर की सुरक्षा के लिये धर्मगंगा ओर बालगंगा के दोनो तरफ तटबन्द बनने चाहिये जिससे मन्दिर ओर गाव सुरक्षित रहेगा।
केदारनाथ में भोले ने आकाशवाणी की कि हे पांडवों बालगंगा और धरमगंगा के निकट जंहा मैने तुम्हे बूढे के रूप में दर्शन दिए थे, वहां की भूमि महज स्पर्श करने से तुम गोत्र हत्या के पाप से मुक्त हो जावोगे।पांडव यहां आये और यंही से स्वर्गारोहणी को चले गये, तब से यहां का नाम बूढाकेदार हो गया। अब यंहा स्थानीय लोगों को धार्मिक पर्यटकों के लिए व्यवस्थायें बनाने की दरकार है।
धार्मिक महत्व से महत्वपूर्ण यह पहला केदार भक्तों के लिए तरस रहा है।धन के आभाव में 22 सालों से निरन्तर बन रहा मंदिर अभि पूरा नही हो पाया है। स्थानीय लोगों द्वारा सरकार से की गई गुजारिश कब पूरी होगी यह भगवान बूढाकेदार का प्रचार प्रसार,
आजकल कोरोना के चलते मंदिर समिति ने मंदिर को बंद किया हुआ है और पुजारी ही सुबह शाम मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करके दीपक जलाते है साथ ही जिला प्रशासन के द्वारा दिये गए नियमो का पालन किया जा था है ताकि कोई कोरोना संक्रमण न हो सके