टिहरी जिले के घनसाली में आज भी बूढाकेदार नाथ धाम मंदिर की पुरानी प्रथा जीवत हैं। जी हा एक अनोखी प्रथा जो बूढाकेदार मंदिर की है जो मंदिर के रावल पुजारी होते है वह नाथ लोग होते है। जिनके कान जन्म से छेदे हुए होते है। उनको ही मंदिर प्रांगण में समाधि दी जाती है।
वर्तमान समय मे बूढाकेदार के पुजारी जो खोली के नाथ श्री बालक नाथ है। उनका स्वर्गवाश हो गए। उनके शरीर का अभिषेक भगवान शिव के जेसे होता है। उन्हें रुद्राक्ष की माला पहनाई जाती है। त्रिपुंड लगा के पालकी मैं बिठा के मन्दिर परिसर में उन्हें समाधि दी जाती है। और भगवान शंकर उन्हें अपनी शरण मे ले लेते है। सभी उनके दर्शन करने के लिए जाते है।
बूढाकेदार नाथ धाम के लिए यह एक बहुत बड़ी बात है कि यह प्रथा आज भी बूढाकेदार नाथ धाम मैं जीवत है।
जानिये महिमा
जनपद टिहरी गढवाल के घनसाली के समीप बुढाकेदार मंन्दिर की महत्ता सदियो से चली आ रही हे। कहा जाता हे कि इस मन्दिर की स्थापना सतयुग में स्वम भगवान शिव ने की थी भगवान शिव पहले यही निवास करते थे। इसलिये बूढाकेदार को पहला केदार कह जाता हे। यह पर पौराणिक मूर्तिया भी हे
कुरूक्षेत्र के युद्ध में पांडवो ने कोंरवो को मार दिया था युद्ध में पांडवो के द्धारा अपने ही परिवारो के लोगो का वध कर देने पर पांडवो पर गोत्र हत्या का पाप लग गया था इस पाप से मुक्ति पाने े लिये पांडवो ने भगवान शंकर से प्रश्प् पूछा कि मुक्ति कैसे मिलेगी तो भगवान ने पांडवो को कहा कि तुम उत्तर दिशा में जावो वही तुम्हे भगवान शिव मिलेगे।
उसके बाद पांडवो उत्तर दिशा की तरफ चलते चलते सतांपंत-महापत की तरफ बढते गये।जहा पर भगवान शिव ने भैंस का रूप धारण किया हुआा था पांडवो इसी इलाके में भगवान का रहने का आभास हुआ तो भीम ने भैस के आने जाने वाले रास्ते में अपनी दोनो जांघ फैला दी ओर जो सामान्य भैस थी वह भीम के जांघ के पीचे से चलते गये। ओर अन्तिम में जैसे ही भगवान शिव जाघ के पास आये जो उन्होने भीम के जांघ पर अपनी गद्धा से वार किया। उसी दोरान पांडवो ने शिव को पकडना चाहा तो भगवान शिव ने दलदल में समा गये जिसमंे सिर नेपाल के पशुपतिनाथ में निकला ओर पीछे का हिस्सा उत्तराखण्ड के केदारनाथ में निकला ओर शरीर का शेष भाग बूढाकेदार में ही रहा जो बूढाकेदार के नाम से प्रसिद्ध हुआ यही वह जगह हे जहा पर भगवान ने बूढे बाबा के रूप में पांडवो को दर्शन दिये।
पैराणिक काल से इस मन्दिर में पूजा करने वाले लोग रावल होते हे जिनके कान जन्म से छिदे होते हे। ओर जब रावल की मृत्यु होती हे तो उनको इसी मन्दिर के प्रागण में समाधि दी जाती हे।
साथ ही मान्यता हे कि बूढाकेदार के लोग केदारनाथ की यात्रा पर नही जाते और अगर चले गये तो उनको कुछ भी परिणाम भुगतना पडता हे। और कोई केदारनाथ जाना चाहता हे तो पहले बूढाकेदार बाबा से अनुमति लेनी पडती हे।
सरकार की अनदेखी के कारण बूढाकेदार पर्यटक स्थल के रूप में प्रसिद्ध नही हो पाया,
केदारनाथ में भोले ने आकाशवाणी की कि हे पांडवों बालगंगा और धरमगंगा के निकट जंहा मैने तुम्हे बूढे के रूप में दर्शन दिए थे, वहां की भूमि महज स्पर्श करने से तुम गोत्र हत्या के पाप से मुक्त हो जावोगे।पांडव यहां आये और यंही से स्वर्गारोहणी को चले गये, तब से यहां का नाम बूढाकेदार हो गया। अब यंहा स्थानीय लोगों को धार्मिक पर्यटकों के लिए व्यवस्थायें बनाने की दरकार है।