उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है।चार धाम,,पंचबद्री,पंचकेदार,पंचप्रयाग यही को कहते हे।कुन्जापुरी सिद्धपीठ के बारे में मान्यता हे कि यह पर जो भी भक्त गण माता के दरवार मे आता हे वह कभी भी खाली हाथ नही लोटता हे उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती हे। यह तक जिस पर किसी भी प्रकार की छाया दोष या किसी भी असाध्या रोग आदि से पीडित रहता हे तो माता के दरवार मे आकर सब दुःख दूर हो जाता हे। इसलिये इस मन्दिर मे दर्शन करने के लिये बडी सख्या मे भक्त आते हे ओर पक्तियो मे खडे होकर मां कुन्जापुरी के दर्शन करते हे।
इस मन्दिर को 52 वां सिद्धपीठ के रूप मे पुजा जाता हे इसका वर्णन स्कन्द पुराण के केदारखण्ड मे भी किया गया हे।
मां कुन्जापुरी सिद्धपीठ मन्दिर का उल्लेख स्कन्द पुराण के केदारखण्ड मे इसका बिस्तार पूर्वक वर्णन किया गया हे।इस मन्दिर की खसियत यह हे कि इस मन्दिर के पुजारी बा्रहम्ण न होकर ठाकुर जाति के भण्डारी लोग हे।
इस मन्दिर मे आश्चर्य की बात यह हे कि जब नवरात्र आते हे तो जहा पर कुन्ज गिरा वह भाग नवरात्रो मे उपर की तरफ आ जाता हे शेष समय मे यह नीचे चला जाता हे।
पौराणिक कथा के अनुसार ब्रहमा जी के पुत्र दक्ष प्रजापति ने यज्ञ किया जिसमे सबको बुलाया गया इस यज्ञ मे सिर्फ शिव को नही बुलाया गया।इसी लिये माँ सती ने यज्ञ मे अपने
पति को न देखकर तथा पिता दक्ष प्रजापति के द्धारा अपमानित होने परमां सती ने अपनी ही योग अग्नि द्धारा स्वयं को जला डाला इससे दक्ष प्रजापति के यज्ञ मे उपस्थित शिव गणो ने भारी उत्पात मचाया।शिवगणो से सूचना पाकर भगवान शिव कैलाश पर्वत से यज्ञ के पास पहुचे तो शिव ने अपनी पत्नी की अस्थि पंजर देखकर गुस्से से होकर शिव ने दक्ष प्रजापति का गर्दन काट दी।ओर शिव ने अपनी पत्नी की र्नििजत अस्थि पंजर देखकर सुध बुध भ्ूाल गये ओर शिव ने माँ सती र्नििजत देह अस्थि पंजर कन्धे मे उठा कर हिमालय की ओर चलने लगे, शिव को इस प्रकार देखकर भगवान बिष्णु ने बिचार किया कि इस प्रकार शिव सती मां के मोह के कारण श्रष्टि का अनिश्ट हो सकता हे इसलिय भगवान बिष्णु ने श्रष्टि कल्याण के लिये अपने सुर्द्धशनचक्र से मां सती के निर्जीव अंगो को काट दिये। जहा जहा सुर्द्धशनचक्र से मो सती के अंग कट कर गिरे तो वह जगह उन्ही अस्थि के नाम से प्रसिद्ध सिद्धपीठ हो गये जैसे कुन्जापुरी मन्दिर माता सती के कुन्ज भाग गिरा,सुरकण्डा मन्दिर मे सिर का भाग गिरा,चन्द्रबदनी मे बदन का भाग गिरा,नैना देवी के पास मे आंख वाला भाग गिरा, इसी तरह जहा 2 मा सती के भाग गिरते गये वह उसी नाम से प्रसिद्ध सिद्धपीठ बनते गये। जहा आज भी इन सिद्धपीठो मे लोगो की बडी आस्था हे।टिहरी के लोग इस देवी को अपना कुलदेवी मानते हेा कहा जाता हे कि जब भी किसी बच्चे पर बाहारी छाया भूतप्रेत आदि लगा हो तो कुन्जापुरी सिद्धपीठ के हवन कुण्ड की राख का टीका लगाने मात्र से कष्ट दूर हो जाता हे अगर किसी के बच्चे नही हो रहे हे तो यह पर हवन करने से मनोकामना पूरी हो जाती हे।जिनकी शादी मे दिक्कते आ रही हो तो मन्दिर के प्रंगण मे लगा रासुली कंे पेड पर माता की चुन्नी बाधने से कुछ ही समय मे शादी हो जाती हे
इसलिये इस मन्दिर मे बच्चे बूढे सब परिवार के साथ अपनी मनोकामना पूरी करने के लिये माता के दर्शन लिये बेताब रहते हे। इस मन्दिर मे माता को खुश करने के लिये श्रीगांर का सामान चुननी श्रीफल,पंचमेवा मिठाई चढाई जाती हे। इस मन्दिर के प्रागण से गगांत्री यमनोत्री गोमुख बर्फ से ढकी पहाडिया दिखाई देती हें
यह आने के लिये सबसे पहले ऋषिकेश आना पडता हे। ऋषिकेश से नरेन्द्रनगर 14 किलो मीटर होते हुये हिन्डोलाखाल तक आना पडता हे फिर हिन्डोलाखाल से कुन्जापुरी सिद्धपीठ तक मोटर मार्ग से 7 किलो मीटर का रास्ता हे ओर हिन्डोलाखाल से कुन्जापुरी सिद्धपीठ तक 312 सीढ़ियों चल कर मंदिर के प्रांगण तक पहुंचते है जहां पर मा के दर्शन करते है