उत्तराखंड के टिहरी जिले के प्रसिद्ध श्री कृष्ण भगवान नागराजा मंदिर देश विदेशो में प्रसिद्ध है और यह पर हर समय मंदिर में आने जाने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी रहती है,मंदिर समिति ने उत्तराखंड सरकार से मांग की है कि इस मंदिर को भी चारधाम कि तर्ज पर विकास किया जाय ,और मंदिर तक आने जाने के लिए रोप वे और कैंची दार रास्ता बनाकर उसके ऊपर टिन की छत लगाकर बनाया जाय,
अयोध्या में जहां राम भगवान की मूर्ति बनाने के लिए नेपाल के गंडकी नदी से शालिकग्राम (पत्थर)लाकर पूजा अर्चना की जा रही है जिस (शिला)पत्थर से मूर्ति बनाई जाएगी , ऐसे ही एक अद्भुत (पत्थर) शिला टिहरी जिले के प्रताप नगर विधान सभा के अंतर्गत सेम मुखेम में स्थित है जहां पर भगवान श्री कृष्ण नागराजा का मंदिर है इसी के समीप अदभुत शिला है जो ताकत लगाने से नहीं हिलता है और एक ही उंगली से हिलने लग जाता है, और इस अद्भुत शिला की पूजा अर्चना करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी रहती है
देवभूमि उत्तराखंड के टिहरी जनपद के सेम मुखेम मंदिर के पास एक ऐसा विशालकाय शिला(पत्थर) है. जिसके आगे विज्ञान भी नतमस्तक है. वहीं इस चमत्कार को लोग आस्था से जोड़कर देखते हैं. आज हम ऐसे विशालकाय पत्थर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे देखकर आप भी दांतों तले उंगलियां दबाने को मजबूर हो जाएंगे
टिहरी प्रतापनगर के अंतर्गत ऊंची पहड़ियों पर स्थित भगवान श्री कृष्ण तपोस्थली सेम मुखेम के समीप ढुगढुगी धार पहुंची. 7 हजार फीट की ऊंचाई पर सेम मुखेम में भगवान श्री कृष्ण नागराज के स्वरूप में विराजमान हैं. मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 6 किमी की खड़ी चढ़ाई पार करनी पड़ती है.
श्रीकृष्ण मंदिर पहुंचने के बाद भी इस चमत्कारी शिला( पत्थर )को देखने के लिए लोगों को एक किमी की अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती है. जहां पहुंचकर हर श्रद्धालु इस चमत्कारी पत्थर का दीदार करना चाहते हैं. साथ ही पत्थर पर जोर-आजमाइश करना नहीं भूलते. ढुगढुगी धार में स्थित इस पत्थर की खासियत ये है कि इस पर कितना भी जोर लगाने के बाद भी नहीं हिलता, लेकिन जैसे ही आप अंगुली से जोर लगाते हैं तो ये विशालकाय पत्थर हिलने लगता है.इसे लोग आस्था की नजर से देखते हैं. स्थानीय लोग इसे भीम का पत्थर भी मानते हैं. सेम मुखेम मंदिर में हमेशा भक्तों का तांता लगा रहता है. जिसका उल्लेख धार्मिक ग्रन्थों में भी मिलता है.
भक्त प्रमोद उनियाल ने कहा कि वास्तव में यहां पर भगवान कृष्ण का वास है चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है पूरी पर्वत श्रृंखला यहां पर हैं और आश्चर्य की बात है कि यहां पर एक ऐसी सिला है जिसे हम ताकत लगाकर नहीं हिला सकते उसे हम सिर्फ एक उंगली से हिला सकते हैं यह भी इस देवभूमि में आश्चर्य की बात है यह साक्षात परिया रहती हैं और यह कृष्ण भगवान की धरती है और धन्य है राजा गंगू रमोला की जिन्होंने कृष्ण को यहां पर रहने के लिए जमीन दी साथ ही कहा कि जिनकी कुंडलियों में कालसर्प दोष होता है वह यहां पर अपनी पूजा करा कर कालसर्प के दोष से मुक्ति पाते हैं,
मंदिर के पुजारी ने कहा कि यह उत्तर द्वारिका के नाम से प्रसिद्ध है और यहां पर भगवान नागराजा का प्रसिद्ध सिद्धपीठ स्थान है यहां पर जो सिला प्रकट हुई है जिसका भक्त लोग दर्शन करते हैं इसका केदारखंड के अध्याय 6 में इसका वर्णन है द्वापर युग से इस की मान्यता है यहां पर जो भी समस्त भक्तजन आते हैं जैसे चर्म रोग हो, किसी प्रकार के दोष है कालसर्प दोष है उसकी पूजा करके दोष समाप्त होता है यहां पर पितृदोष कालसर्प योग दोष का निवारण भी होता है
मंदिर समिति के अध्यक्ष गोविंद रावत ने कहा कि यहां पर देश विदेशों के भक्त मंदिर के दर्शन करने आते हैं और पूजा पाठ करते हैं और हमारी सरकार से मांग है कि मंदिर तक पहुंचने के लिए रोपवे का निर्माण किया जाय जिससे बुजुर्ग पर्यटकों को चढ़ाई न चढ़ने पड़े और मन्दिर के दर्शन कर सकें मड़भागी से मंदिर तक पैदल रास्ते को बनाया जाय, जिससे आने जाने वाले पर्यटकों को भी चलने में दिक्कत है ना हो